अनुशासन का संधि विच्छेद है अनु + शासन अर्थात अपने ऊपर शासन करना तथा उस शासन के अनुसार अपने जीवन को चलाना ही
अनुशासन है। अनुशासन अपने आप में एक साधना हैl व्यक्तिगत साधना को हम अनुशासन कह
सकते हैं मगर सामाजिक साधना अनुशासन कहलाती हैl सामाजिक अनुशासन हमें निरंतर आगे
बढ़ने में सहायता प्रदान करता हैl इतिहास गवाह है कि अनुशासन में रहकर बड़ी से बड़ी उपलब्धियों को सरलता पूर्वक हासिल
किया जा सकता हैl Jim Rohn कहते हैं कि Discipline
is the bridge between goals and accomplishment. वास्तव में अनुशासन ही उद्देश्य
और उपलब्धियों के बीच का सेतु ही हैl वास्तव
में हमारी सफलता का आंकलन हमारे बल, धन अथवा हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा से नहीं किया
जाता बल्कि अनुशासन और आंतरिक शांति से किया जाता हैl
जैसा कि माना जाता है कि बच्चे कि प्रथम शिक्षक उसकी माँ होती है व प्रथम
पाठशाला उसका घर होता हैl बच्चा वही सब करना पसंद करता है जो वह घर-परिवार आदि में
देखता हैl इसलिए परिवार में अनुशासन का माहौल बनाना अति आवश्यक है जो भावी पीढ़ी के
लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगाl कई बार महान लोगों के द्वारा अपनाया गया अनुशासन
देखकर ही व्यक्ति अथवा बच्चे में अनुशासन का भाव विकसित होने लगता हैl इस प्रकार का अनुशासन सबसे बेहतर होता हैl इसी
को आत्मानुशासन कहते हैंl
जीवन में अनुशासन के महत्व को समझाते हुए मैरी चैपियन ने कहा है किअनुशासन की
कमी कुंठा और आत्म-घृणा की तरफ ले जाती हैl
प्लूटो कहते हैं कि “Discipline must be based on love and controlled by love.” निःसंदेह
अनुशासन का मतलब दण्ड से नहीं होता, अपितु व्यक्ति अथवा बालक में नम्रता, समर्पण,
आज्ञाकारिता, मानवीयता आदि जैसे गुणों का विकास करके भी उसे अनुशासित किया जा सकता
हैl शिक्षाशास्त्री फ्रोएबेल भी बालक को सहानुभूति का सहारा लेकर आत्म-नियंत्रित
होने के लिए प्रोत्साहित करने पर जोर देते है ना कि किसी प्रकार के दण्ड के द्वारा
उसे अनुशासित करने परl
परन्तु बाइबिल के अनुसार अनुशासन के कई पहलू हैं जैसे- मार्गदर्शन, हिदायत, प्रशिक्षण, ताड़ना, सुधार, यहाँ तक कि दंड। कुछ दार्शनिक व शिक्षाशास्त्री मानते हैं
कि अनुशासन के लिए दण्ड देना आवश्यक हैl दण्ड मनुष्य के अन्दर भय उत्पन्न करता हैl
भय उसे गलत कार्यों को करने से रोकता हैl अनुशासन मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक हैl
अनुशासन उसे समयानुरूप कार्य करना सिखाता हैl उसके गुणों का विकास करता हैl
अनुशासन में रहना ज़रा कठिन अवश्य होता हैl जो लोग अनुशासित जीवन जीना पसंद नहीं
करते वह आलसी हो जाते हैं जिस कारण उन्हें भविष्य में तमाम समस्याओं से दो-चार
होना पड़ता हैl
विद्यालयी स्तर पर भी
शिक्षकों व प्राचार्य महोदयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नियम कम से कम हों और
मात्र ऐसे नियम हों जिनका पालन सभी विद्यार्थी सरलता से कर पायेंl उदाहरण के लिए
कक्षा में हो रहे शोरगुल पर हमेशा नाराजगी नहीं दिखानी चाहिए क्योंकि कभी-कभी यह
शोरगुल कक्षा की जीवन्तता को दर्शाता है ना कि अध्यापक की असफलता कोl विद्यार्थियों के साथ होने वाली समस्याओं
को भी समझना चाहिए अन्यथा विद्यार्थियों के मध्य विद्रोह भावना भी पनप सकती हैl
यदि अधिकारों का प्रयोग किया जाए तो ज्यादा उचित होता हैl औचित्यहीनता और मनमानापन
शक्ति के लक्षण होते हैं, ये मात्र भय उत्पन्न कर सकते हैं आदर नहींl
अनुशासन की स्थापना में एक ओर जहां प्रेम, स्नेह,
मार्गदर्शन आदि बहुत महत्व रखता है वहीँ दूसरी और दण्ड को महत्व को भी नाकारा नहीं
जा सकताl प्रारम्भ में किसी भी व्यक्ति अथवा बालक को पहले नसीहत व मार्गदर्शन देकर
उसे सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जाये परन्तु फिर भी यदि वह अपनी
त्रुटियों को बार-बार दोहराता है तो व्यक्ति अथवा बालक को दण्ड देने से पहले पूरे
आत्मसंयम के साथ पहले यह सुनिश्चित कर लेना अति आवश्यक है कि क्या दोषी व्यक्ति
अथवा बालक वास्तव में दण्ड का अधिकारी है अथवा नहींl फिर उस व्यक्ति अथवा बालकके
दोष के अनुरूप ही उसे उचित दण्ड दिया जायेl
यही उचित है और अनुशासन में दण्ड का यही औचित्य हैl