Skip to main content

15 जनवरी

आज 15 जनवरी, 2018 है।

मैं रोज़ की तरह ही बस स्टैण्ड पर खड़े होकर उसका इन्तज़ार कर रहा था। वो जैसे मेरी रोज़ की जिन्दगी का हिस्सा बन चुकी थी। मैं अन्धेरी के उस छोटे से बस स्टॉप पर उसका इन्तज़ार ठीक वैसे ही करता हूँ जैसे कोई चकोर पूनम के चाँद का, कोई कोयल बसंत ऋतु का और कोई मोर बारिश का। पल्लवी डिजिटल फ़ोटो स्टूडियो के बगल वाले मोड़ से जैसे ही वो मुड़ती है, हम दोनों एक दूसरे को देखते हैं। वो मेरी तरफ़ कुछ इस तरह से आती हुई प्रतीत होती है जैसे कि वो रुकेगी और मुझे बाहों में भर लेगी। एक अनजाना सा रिश्ता बन चुका है उससे और लगता है कि जैसे अब कभी नहीं टूटेगा। लेकिन फिर भी कभी-कभी मुझे उस पर गुस्सा आता है लेकिन मैं कर भी क्या सकता हूँ। सबको साथ लेकर चलना उसका काम ही है। वो सिर्फ मेरे लिए तो नहीं आती।

मुम्बई नगर निगम की वो पीले, नीले और नारंगी रंग की खटारा बस जिसे हम सभी यात्री बस नम्बर 25 C के नाम से जानते हैं, पल्लवी डिजिटल फ़ोटो स्टूडियो वाले मोड़ से मुड़ती हुई दिखाई दी और कुछ ही देर में बस स्टॉप पर आकर रुकी। आज काफ़ी भरी हुई है। मैं जैसे-तैसे उसमे जगह बनाते हुये चढ़ गया। मेरे ठीक आगे एक मोटा सा व्यक्ति खड़ा हुआ था। कुछ अज़ीब सी बदबू आ रही थी उसके कपड़ों से। मैं पीछे की तरफ होकर दूर जाने की कोशिश करने ही वाला था कि बस में कुछ और लोग चढ़ गये और मेरी कोशिश नाक़ाम हो गयी। चालक ने हॉर्न बजाया और बस चलने लगी और हम सभी यात्रियों को जो जैसे-तैसे अपने आप को भीड़ में खड़ा किये हुये थे, एक झटका लगा और उस मोटे आदमी ने अपने-आप को संभालने के लिये बस की छत से जुड़े हुए पाइप से लटकने वाले हैण्डल को पकड़ने के लिये झटके से हाथ ऊपर किया। मुझे एक असहनीय बदबू........ जो किसी को भी उल्टियाँ करने पर मजबूर कर दे, का शिकार बनना पड़ा। मैं शायद उल्टियाँ कर ही देता अगर मेरी नज़र उस पर ना पड़ी होती। मुझसे तीन फ़ीट की दूरी पर दो महिलाओं के साथ वो भी खड़ी हुई थी।

खुले हुए काले बाल जैसे कश्मीर की वादियों में काली घटा उमड़ आयी हो, ललाट (forehead) जिसे देखते ही चूमने को मन करे, नाक पर वो बड़ा सा लेंस वाला चश्मा और उनके पीछे से झांकती हुईं वो हिरण के जैसी मोहित कर लेने वाली आँखें, होंठ गुलाबी जैसे किसी गुलाब की पंखुड़ियों से बनाये हों बनाने वाले ने और उसकेे दो रुख़सार (Cheeks) उन पर तो जैसे रोहित (the red sun of dawn) की लालिमा उतर आई हो और उसके गोरे बदन पर सतरंगी धागों से कढ़ाई की हुई काले रंग की साड़ी मानों उसकी खूबसरती पर चार चाँद लगा रही हो।

उस मोटे आदमी की बगल के नीचे से मिली उसकी एक झलक ने उस असहनीय बदबू को जैसे सुगन्ध में बदल दिया था। अब मुझे उसके हैण्डल पकड़ने से कोई आपत्ति नहीं थी। उस बस की वो खड़र-खड़र की आवाज़ जैसे मेरे कानों में कोई संगीत घोल रही थी। शायद अरिजीत सिंह का कोई रोमांटिक गाना। मैं उस शोर करती हुई खटारा बस के अंदर खिले हुये मेरे चाँद का दीदार करने में मग्न था कि अचानक चूं....... की आवाज़ करते हुये बस रुकी और हम सबको ज़ोर का झटका लगा। उसे गिरते हुये देखकर मन किया कि उछल कर उसे थाम लूँ लेकिन उसने आपने आप को संभाल लिया। वो मोटा आदमी बस से उतर गया। वो अपनी साड़ी का पल्लू संभाल ही रही थी कि उसकी नज़र भी मुझ पर पड़ी। उसने मेरी तरफ़ देखा और एक छोटी सी मुस्कान उसके गुलाबी होठों पर खेल गयी। उसने मेरी तरफ़ देखा और आँखों से इशारा करके मुझसे पूछा - "रोहित, कैसी लग रही हूँ मैं?"

हाँ, वो मेरा नाम जानती है। मैं भी उसका नाम जानता हूँ लेकिन आपको नहीं बता सकता। हम दोनों एक दूसरे को पिछले छः सालों से जानते हैं। हम दोनों एक दूसरे से बेपनाह मुहब्बत करते थे। करते थे! अरे नहीं!..... करते हैं शायद। शायद इसलिए क्योंकि वो उसका पक्ष है लेकिन मैं उससे आज भी उतना ही प्यार करता हूँ जितना कि छः साल पहले करता था। कुछ अन्जान से कारण जिन्हें सिर्फ वो जानती है, की वजह से हमें अलग होना पड़ा। पिछले कुछ समय से हम फिर से सम्पर्क में हैं लेकिन हमारा रिश्ता अब पहले जैसा नहीं रहा। हम अगर प्रेमी नहीं हैं तो हम दोस्त भी नहीं हैं। हाँ, एक अन्जान सा रिश्ता है जिसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है लेकिन शब्दों की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। अब वो पेशे से एक शिक्षिका है। बच्चे उससे बहुत प्यार करते हैं। उसे बहुत अच्छे से आता हैं बच्चों का दोस्त बनना, उनको समझना और उनकी संवेदनाओं को संभालना। शायद इसलिए वो अपनी संवेदनाओं को भी अपने क़ाबू में आसानी से कर लेती है और उन्हें मुझ पर ज़ाहिर नहीं होने देती। वो एक अच्छी शिक्षिका है। बहुत कुछ सीखा है मैंने उससे।

चालक ने ब्रेक लगाया और एक हल्के से झटके ने मुझे मेरे कल्पना के आसमान से उठा कर सच्चाई की ज़मीन पर ला पटका। वो मेरी तरफ़ ही देख रही थी। मानो कि उसकी आँखें मुझसे पूछ रही हों - "कहाँ खो जाते हो? तुमने बताया नहीं मैं कैसी लग रही हूँ?"

आज उसे देखकर मेरा हृदय सामान्य से कुछ अधिक धड़क रहा था मानो कह रहा हो "सुनो मुझे आज तुमसे फिर से प्यार हो जायेगा!" और नज़रें बस उस पर ही टिक जाना चाह रही थीं। मैं उसे मेरे दिल का हाल बताने ही वाला था कि दिमाग़ ने मुझे लताड़ दिया।

मैं उसे देखकर हल्का सा मुस्कुराया और सर हिला कर उसे जवाब दिया - "अच्छी लग रही हो।"
उसने शिकायती नजरों से मेरी तरफ देखा जैसे कह रही हो  -"बस इतना ही🙄"

और मैंने ख़ुद से कहा - "मुझे माफ़ करना मेरी जान मैं इससे ज़्यादा तारीफ़ नहीं कर सकता वरना मुझे तुमसे फिर से प्यार हो जायेगा और फिर तुम मुझे वो सबक याद दिलाओगी जो तुमने कहा था ना एक बार - Never beg to be loved!"

इतने में ही मेरा बस स्टॉप आ गया और मैं इशारों में उससे विदा लेते हुए उतर गया।

कुमार महोबी

Popular posts from this blog

Truth behind the Reproduction in Peacock

There is a number of mythological stories behind the reproduction in peacock. Peacock is the National Bird of India. Peacock was declared the National Bird of India in 1963 . The peacock was selected to be declared the national bird because it has a good religious involvement in Indian culture and traditions. Besides this it is well distributed in India and everybody knows it well. So, it can be justified as the National bird of India. Peacock carries lots of mythological facts behind itself. According to Mahabharata Bheeshma Pitamah abducted Amba and refused to marry her. Amba took AGNI SAMADHI , entered the fire and reborn as Shikhandi who took revenge from Bhishma in the war of Kurukshetra . The word ' Shikhandi '  means Peacock. On the other hands we can find a mythological story in Ramayana too. When Indra cheated Ahilya and was caught by Gautama Maharishi , he was cursed to have one thousand vaginas on his body which made Indra's life miserable. Later by the ...

अनुशासन में दण्ड की औचित्यता

अनुशासन क्या है ? अनुशास्यते नैन। अर्थात स्वयं का स्वयं पर शासन।  अपने ऊपर स्वयं शासन करना तथा शासन के अनुसार अपने जीवन को चलाना ही अनुशासन है।   अनुशासन राष्ट्रीय जीवन के लिए बे हद जरूरी है। यदि प्रशासन , स्कूल , समाज , परिवार सभी जगह सब लोग अनुशासन में रहेंगे और अपने कर्त्तव्य का पालन करेंगे , अपनी ज़िम्मेदारी समझेंगे तो कहीं किसी प्रकार की गड़बड़ी या अशांति नहीं होगी। नियम तोड़ने से ही अनुशासनहीनता बढ़ती है तथा समाज में अव्यवस्था पैदा होती है। अनुशासन कुछ ऐसा है जो सभी को अच्छे से नियंत्रित किये रखता है। ये व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करता है और सफल बनाता है। हम में से हर एक ने अपने जीवन में समझदारी और जरुरत के अनुसार अनुशासन का अलग - अलग अनुभव किया है। जीवन में सही रास्ते पर चलने के लिये हर एक व्यक्ति में अनुशासन की बहुत जरुरत पड़ती है। अनुशासन के बिना जी वन बिल्कुल निष्क्रिय और निर्थक हो जाता है क्योंकि कुछ भी योजना अनुसार नहीं होता है। अगर हमें किसी भी प्रोजेक्ट को पूरा करने के बारे में अपनी योजना को लागू करना है तो सबसे पहले हमें अनुशासन में होना पड़ेगा। ...

Personality

Personality Introduction Personality is the product of social interaction in group life. In society every person has different traits such as skin, color, height and weight. They have different types of personalities because individual are not alike. It refers to the habits, attitudes as well as physical traits of a person which are not same but have vary from group to group and society to society. Everyone has personality which may be good or bad, impressive or unimpressive. It develops during the process of socialization in a culture of a specific group or society. One cannot determine it of an individual exactly because it varies from culture to culture and time to time. For example, a killer is considered criminal in peace time and hero in war. The feeling and action of an individual during interaction mould the personality. It is the sum of mental and physical abilities and capabilities. Meaning Personality has been derived from the Latin word “persona” which means “mask...